Celebrating Community Through Art
पहली मीटिंग से ही मैं देहरी की केंद्रीय गतिविधि संवाद-उत्सव का हिस्सा रहा हूँ। संवाद उत्सव की रूपरेखा मेरे जैसे बच्चे को देखकर ही उपजी होगी। मेरे जैसे बच्चे से मतलब कि जो अपने से अलग विचार वाले व्यक्ति से संवाद ही स्थापित नहीं कर पा रहे थे। करें भी कैसे क्योंकि सामने वाले के विचारों को न पढ़ा है और न समझा है बल्कि उस विचार के बेसिक बातों तक की ठीक-ठीक समझ नहीं है। जो अपने कुएँ के मेढक बन कर रह जाते है। सामने वाले के प्रति बस उड़ती-फिरती बातों को सुनकर एक अच्छी या बुरी समझ बना ली है। जिस विचार या बात से सहमत हो रहे है उसकी भी गहराई में न जाना। कॉलेज के पहले साल में ही मैं किसी एक विचार और पार्टी से जुड़ भी गया था। जब वैभव भैया से हमारी मुलाक़ात हुई तो बात करते हुए मुख्य रूप से यही सब बातें निकलकर सामने आई। यही सब देखकर भैया ने हमें संवाद-उत्सव से जोड़ने का प्लान रखा। शुरुआती संवाद-उत्सव की बातचीत किताबों, विचारधाराओ और फ़िल्मों पर केंद्रित रही। जिसके ज़रिये एक विचारधारा से निकलकर मेरे पढ़ने और समझने का दायरा विस्तृत हुआ। धीरे-धीरे संवाद-उत्सव के ज़रिए मेरा फ्रेंड सर्किल अलग-अलग विचारों से सहमति और मतभेद रखने वाले दोस्तों का बन गया। यहाँ सब साथ बैठते तो रिकमंडेशन्स बहुत सारी मिलती थीं। इससे मेरा किताबें पढ़ना और फ़िल्में देखना बढ़ गया। अब साथी दोस्तों के साथ मतभेद होने के बावजूद एक दोस्ती बनी रहती थी। मनभेद और मतभेद समझ आने लगा था। मुख्य रूप से आसपास के पर्यावरण के प्रभाव को समझने लगा था कि हम अपने आसपास मौजूद लोगों, परिस्थितियों, किताबों और फ़िल्मों से प्रभावित होते हैं। मुझे जैसा माहौल मिल गया मैं वैसा बन गया और दूसरे को जैसा मिला वो वैसा। धीरे-धीरे संवाद-उत्सव में किताबों और फ़िल्मों से इतर व्यक्तिगत समस्याएँ जैसे फाइनेंसियल इश्यूज़, रिलेशनशिप इश्यूज़, डिप्रेशन आदि पर भी बातें साझा होने लगी। इन चर्चाओं ने मेरे व्यक्तिगत जीवन को बहुत सुलझाया है चाहे वो मेरा अपने पापा के साथ रिश्ता हो, मम्मी के सुसाइड के बाद आया डिप्रेशन या लव लाइफ। कुछ सेशन चाइल्डहुड ट्रामा पर भी हुए जिससे अपने बचपन में फिर से झाँक पाया। अभी की बहुत सारी आदतें और डर कहाँ से आए, उनका भी पता चला। धीरे-धीरे एहसास हुआ कि हमारे व्यवहार का अधिकांश हिस्सा बचपन से जुड़ा रहता है। संवाद उत्सव की सेल्फ पोर्ट्रेट एक्टिविटी ने मुझे बहुत मदद की। जिसके ज़रिए अपने से जुड़े लोगों और चीज़ों से रिश्ता पहचाना। अपने जीवन से क्या चाहता हूँ, मैं किस तरह का इंसान हूँ, जीवन में क्या करके खुश रहूँगा। इस एक्टिविटी से पहले कभी ख़ुद के बारे में इस तरह नहीं सोचा था। जैसे तुम्हें क्या खुश करता है ? किस बात से तुम इरिटेट हो जाते है ? अपना पसंदीदा शब्द ? संवाद उत्सव ने लिसेनर के तौर पर मुझे बहुत समृद्ध किया है। यहाँ ज़्यादातर वक्त हम अपना पक्ष कहने के अलावा दूसरे को सुनते ही हैं। ये सुनना, जवाब देने के लिए सुनना नहीं बल्कि समझने और स्वीकार करने के लिए सुनना होता है। इससे मेरे अंदर धैर्य बढ़ा। संवाद-उत्सव की एक खास बात है कि मुझे कभी जज किए जाने का एहसास नही हुआ। मैं जैसा हूँ, उसके बारे में कहने में वहाँ सहजता महसूस की है। संवाद-उत्सव ने लोगों और चीज़ों के प्रति ऐक्सेप्टेंस को भी बढ़ाया। कुछ सेशन के बाद ही संवाद-उत्सव एक परिवार के समान महसूस होने लगा था। इसमें शामिल होने का बेसब्री से इंतज़ार रहता था। एक तो संवाद-उत्सव का आईडिया मुझे हर वक्त बहुत फ़ैंटिसाइज़ करता है। ऐसा लगता है, जैसे सालों से लुप्त हुई किसी परंपरा या कार्यक्रम को फिर से शुरू कर दिया है। मुझे इस सब से इतना लाभ मिल रहा था कि धीरे-धीरे मैं सब दोस्तों को यहाँ लाने की कोशिश करने लगा।
नीलेश गुप्ता, बुंदेलखंड @coffee_and_a_conversation
5/1/20241 min read
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